क मुद्दत के बाद

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क मुद्दत के बाद ऐसा वक्त आया।

कि तारीखों पर छलाॅग लगाने का मन आया है।
बेचैनियाॅ अब ऐसी मिलती है कहाॅ।
कि घड़ी की सुई घुमाने का मन आया है।
याद नही आखिरी बार कब हुआ था येे
कि वक्त से पहले उस पल को जीने का मन आया है।
रोज रात को ख्वाब देखता हूॅ मैं
पर अब दिन में खुली आॅख से ख्वाब देखने का मन आया है।
लतीफों, व्यंगो पर रोज हॅसता हुॅ मैं।
अब तनहाई में मुस्कुराने का मन आया है।
चैबीस घंटे का होता है हर दिन पर उस दिन को।
बड़ा करने का बचकाना ख्याल मन में आया है।
वश नही है मेरा मंै जानता हूॅ पर फिर भी।
उस दिन मौसम अच्छा बनाने का मन आया।
ख्यालो से धडकन बढ़ जाये और कसक मन को तड़पाये।
ऐसे ख्याल, ऐसी कसक को कैद करने का मन आया है।
हकीकत बेहतर होगी सपनो से यह सोच कर गुदगुदाने का मन आया है।
एक अरसे के बाद आज फिर कलेन्डर में काॅटे लगाने का मन आया है।
एक मुद्दत के बाद ऐसा वक्त आया है।
कि तारीखो पर छलाॅग लगाने का मन आया है।।

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