मिट्टी बनने से पहले
मिट्टी बनने से पहले मिट्टी बनना चाहता हूॅ।
मैं अपनेे सपनों को हकीकत का साॅचा देना चाहता हूॅ।
बिना शालिका की चाह के मैं बूूॅदो को तन पर महसूस करना चाहता हूॅ।
मैं मंजिलो की तलाश नही,
मील के पत्थर पर सर रख कर सोना चाहता हूूॅ।
पल दो पल के लिये ही सही,
मै अपनी माॅ की गोद में खेलना चाहता हूॅ।
कदम दो कदम के लिए ही सही, मैं अपने दोस्त की अंगुली पकड़ना चाहता हूॅ।
तन से नही तो मन से सही,
कुछ पलो के लिए बच्चा बनना चाहता हूॅ।
बस, स्कूल की घंटी, गुड़िया के बाल वाले का इंतजार करना चाहता हूॅ।।
मैं फिर एक बार अधटूटी साईकिल और पूर्ण टूटी पगडंडी पर सफर करना चाहता हूॅ।
चार साथी, आठ कंचे, एक आॅख बंद करके ।
मैं फिर निशाना लगाना चाहता हूॅ।
सूखा गुलाब किताब में,
किताब उल्टी छाती पर, गालांे पर मुस्कुराहट लिए,
मैं उसको बेइंतहान याद करना चाहता हूॅ।
जोश दिल में हो, और जूनून मन में।
मैं ऐसी मंज़िलांे की तलाश करना चाहता हूॅ।
नही छूटेगी मेरे हाथ से उसकी अंगुली कभी, ऐसे झूठ पर विश्वास करना चाहता हूॅ।
नही बदलेगा वो समाॅ, वो मौसम, वो नजारा,
ऐसी कल्पना को हकीकत बनाना चाहता हूॅ।
ऐ मेरे खुदा, मेरे मौला, मेरे भगवान,
मैं तुझसे कुछ नही,
अपनी जिंदगी से दो पल उधार लेना चाहता हूॅ।।