मासुम

सताया किसी ने नहीं मुझे, तूने है मेरे खुदा।
बनाया किसी ने नहीं मुझे, तूने है मेरे खुदा।
हर पल ये दिल लड़ता है मुझसे
क्यों इतना कोमल बनाया है इसे, तूने ऐ मेरे खुदा।
क्यों यादों को ये भूल नहीं जाता।
क्यांे वादांे को ये तोड़ नहीं देता।
क्यांे विद्रोह ये करता नहीं।
दोषी नही पर कैद में क्यांे रहता है ये, ऐ मेरे खुदा।
अश्रु तीखे नैनो से बहते है।
होंठ मुस्कुराकर कभी कुछ कहते है।
अक्ससर मन मसोस के रह जाता है यह।
न चाहते हुए भी अफसोस करता है, ये ऐ मेरे खुदा।
कई बार समझाया मैंने इसे, कि आरजू न कर।
कई बार बहलाया मंैने इसे कि जिद न कर।
सहमें बच्चे कि तरह देखता है मुझे।
फिर अनदेखा कर मुझे, अपनी राह चलता है ये ऐ मेरे खुदा।
क्यों इतना भोला बनाया है तूने इसे।
क्यों यादों को रखना तूने सिखाया है इसे।
क्यों सपनो को बुनने कि कला दी है तूने इसे।
क्यों एहसान-फरहामोश नही बनाया इसे तूने मेरे खुदा।
क्या पत्थर से काॅच लड़ पाया है कभी।
क्या अंधेरा रोशनी का साथ निभा पाया है कभी।
क्या आग पानी को बचा पाया है कभी।
फिर तूने सपनो को और हकीकत को इस।
दिल में क्यों मिलवाया है ऐ मेरे खुदा।।

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