कौन कहता है बच्चो के हाथ में कुछ नही होता।
उम्र से बल, बुद्वि तो मिलती है पर इच्छाओ का दरिया काबू में नही रहता।
पहले तो सोच, साधना से निकलती थी।
अब साधन जुटाने में सोचने का समय नही मिलता।
पहले तो दो गोली, एक पतंग, एक बल्ला, एक साईकिल से मन भर जाता।
अब हजारो नोट डालकर भी मन का कुअंा नही भरता।
एक साईकल दो सवार, सफर का पता नही चलता था, अब लाखो की मोटर में क्षणभर भी मन नही लगता।
वो एक गोली को तोड़कर खाने से दोनो का मन भर जाता था।
अब फाईव स्टार के खाने में ऐब नजर आता है।
एक बिस्तर में स्वेटर पहन इम्तिहान की तैयारी, आसान लगती थी।
अब बिस्तर कई है लेकिन इम्तिहान खत्म नही होता।
रात में मैं अपने घर आता तो उसके साथ कल का प्लान बनाकर, अब दिन रात प्लान बनाता हूॅ, पर रात, घर जाने का पल नही आता।
पहले आवाज़ देता था, ‘‘आंटी विकी घर पर है‘‘, तो
दोस्त बाहर आता था आज चीख-चीख कर आवाज़ देने से भी कोई बाहर नही आता ।
कौन कहता है बच्चांे के हाथ में कुछ नहीं होता ।